राजस्थान की झीले
राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे।
इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर।
- मीरली या मीरवी- तालाब, बावड़ी, कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति।
- कीणिया- कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति।
- चेजारा- चुनाई करने वाला व्यक्ति।
राजस्थान की झीलों की नगरी उदयपुर।
भारत की झीलों की नगरी श्रीनगर।
खारे पानी की झीले | मीठे पानी की झीलें |
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सांभर- जयपुर | जयसमंद- उदयपुर |
पचभदरा- बाड़मेर | राजसमंद- राजसमंद |
डीडवाना- नागौर | बालसमंद- जोधपुर |
लुणकरणसर- बीकानेर | आनासागर- अजमेर |
फलौदी- जोधपुर | फतेहसागर- उदयपुर |
कावोद- जैसलमेर | फायसागर- अजमेर |
रेवासा- सीकर | उदयसागर- उदयपुर |
तालछापर- चुरू | पुष्कर- अजमेर |
कुचामन- नागौर | कोलायत- बीकानेर |
डेगाना- नागौर | नक्की- सिरोही |
पौकरण- जैसलमेर | सिलिसेढ- अलवर |
बाप- जोधपुर | पिछौला- उदयपुर |
कोछोर - सीकर | कायलाना- जोधपुर |
नावां - नागौर | |
पीथनपुरी - सीकर |
राजस्थान की मीठे पानी की प्रमुख झीलें
जयसमंद झील /ढेबर झील (उदयपुर)
राजस्थान में मीठे पानी की सबसे बड़ी कृत्रिम झील जयसमंद है। इस झील का निर्माण मेवाड़ के राणा जयसिंह ने गोमती नदी का पानी रोककर(1687-91) कराया गया। इस झील में छोटे-बडे़ सात टापू है। इनमें सबसे बडे़ टापू का नाम बाबा का भागड़ा/भकड़ा है और उससे छोटे का नाम प्यारी है। इन टापूओं पर आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते है। जयसंमद झील से उदयपुर जिले को पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। जयसंमद झील को पर्यटन केन्द्र के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। इस झील से श्यामपुरा व भट्टा/भाट दो नहरें भी निकाली गई है।
एशिया/भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी कृत्रिम झील गोविन्द सागर झील(भाखड़ा बांध, हिमाचल प्रदेश)
राजसमंद झील (राजसमंद)
इसका निर्माण मेवाड़ के राजा राजसिंह ने गोमती नदी का पानी रोककर (1662-76) इस झील का निर्माण करवाया गया। इस झील का उतरी भाग "नौ चौकी" कहलाता है। यही पर 25 काले संगमरमर की चट्टानों पर मेवाड़ का पूरा इतिहास संस्कृत में उत्कीर्ण है। इसे राजप्रशस्ति कहते है जो की संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति है। राजप्रशस्ति अमरकाव्य वंशावली नामक पुस्तक पर आधारित है जिसके लेखक - रणछोड़ भट्ट तैलंग है। इसके किनारे "घेवर माता" का मन्दिर है।
पिछोला झील (उदयपुर)
14 वीं सदी में इस मीठे पानी की झील का निर्माण राणा लाखा के समय एक पिच्छू नामक बनजारे ने अपने बैल की स्मृति में करवाया। पिछौला में बने टापूओं पर 'जगमन्दिर(लैक पैलेस)' व 'जगनिवास(लैक गार्डन पैलेस)' महल बने हुए है। जग मंदिर का निर्माण महाराणा कर्णसिंह ने सन् 1620 ई. में शुरू करवाया तथा जगत सिंह प्रथम ने 1651 ई. में पूर्ण करवाया। मुगल शासक शाहजहां ने अपने पिता से विद्रोह के समय यहां शरण ली थी। जगमन्दिर महल में ही 1857 ई. में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान महाराणा स्वरूप ने नीमच की छावनी से भागकर आए 40 अंग्रेजो को षरण देकर क्रांन्तिकारियों से बचाया था। जगनिवास महल का निर्माण महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने 1746 ई. में करवाया था। वर्तमान में इसे पर्यटन केन्द्र के रूप में इन महलों को "लेक पैलेस" के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस झील के समीप "गलकी नटणी" का चबुतरा बना हुआ है। इस झील के किनारे "राजमहल/सिटी पैलेस" है। इसका निर्माण उदयसिंह ने करवाया। इतिहासकार फग्र्यूसन ने इन्हें राजस्थान के विण्डसर महलों की संज्ञा दी। सीसारमा व बुझडा नदियां इस झील को जलापूर्ति करती है। राजस्थान में सौर ऊर्जा चलित प्रथम नाव पिछोला झील में चलाई गई।
आनासागर झील (अजमेर)
अजमेर शहर के मध्य स्थित इस झील का निर्माण अजयराज के पुत्र अर्णाेराज(पृथ्वीराज चौहान के दादा आनाजी) ने 1137 ई. में करवाया। जयानक ने अपने ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में लिखा है कि "अजमेर को तुर्कों के रक्त से शुद्ध करने के लिए आनासागर झील का निर्माण कराया था' क्योंकि इस विजय में तुर्का का अपार खून बहा था। पहाड़ो के मध्य स्थित होने के कारण यह झील अत्यन्त मनोरम दृष्य प्रस्तुत करती है अतः मुगल शासक जांहगीर ने इसके समीप नूरजहां(रूठी रानी) का महल बनवाया। दौलतबाग का निर्माण करवाया जिसे वर्तमान में सुभाष उद्यान कहते है। इस उद्यान में नूरजहां की मां अस्मत बेगम ने गुलाब के इत्र का आविष्कार किया।इसके किनारे जहांगीर ने चश्मा-ए-नूर झरना बनवााया। शाहजहां ने इसी उद्यान में पांच बारहदरी का निर्माण करवाया।
नक्की झील
राजस्थान के सिरोही जिले मे माऊंट आबू पर स्थित नक्की झील राजस्थान की सर्वाधिक ऊंचाई पर तथा सबसे गहरी झील है। राजस्थान की एक मात्र झील जो सर्दियों में जम जाती है। झील का निर्माण ज्वालामुखी उद्भेदन से हुआ अर्थात यह एक प्राकृतिक झील(क्रेटर झील) है। मान्यता के अनुसार इस झील की खुदाई देवताओं ने अपने नाखुनों से की थी अतः इसे नक्की झील कहा जाता है। यह झील पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। इस झील में टापू है जिस पर रघुनाथ जी का मन्दिर बना है। इसके अलावा इस झील के एक तरफ मेंढक जैसी चट्टान बनी हुई है जिसे "टाॅड राॅक" कहा जाता है। एक चट्टान की आकृति महिला के समान है जिसे "नन राॅक" कहा जाता है। एक आकृति लड़का-लड़की जैसी है जिसे "कप्पल राॅक" कहा जाता है। इसके अलावा यहाँ हाथी गुफा, चंम्पा गुफा, रामझरोखा, पैरट राॅक अन्य दर्शनीय स्थल है। यह झील गरासिया जनजाति का आध्यात्मिक केन्द्र है। अतः लोग अपने मृतको की अस्थियों का विसृजन नक्की झील में ही करते है। इसके समीप ही "अर्बुजा देवी" का मन्दिर स्थित है। अतः इस पर्वत को आबू पर्वत कहा जाता है।
पुष्कर झील
राजस्थान के अजमेर जिले में अजमेर शहर से 12 कि.मी. की दूरी पर पुष्कर झील का निर्माण ज्वालामुखी उद्भेदन से हुआ है। यह झील भी प्राकृतिक झील है। यह राजस्थान का सबसे पवित्र सरोवर माना जाता है।इसलिए इसे आदितीर्थ/पांचनातीर्थ/कोंकणतीर्थ/तीर्थो का मामा/तीर्थराज भी कहा जाता है। पुष्कर झील के बारे में मान्यता है कि खुदाई पुष्कर्णा ब्राह्मणों द्वारा कराई गई। अतः पुष्कर झील की संज्ञा दी गई। तथा किवदन्ती के अनुसार इस झील का निर्माण ब्रह्माजी के हाथ से गिरे तीन कमल के पुष्पों से हुआ जिससे क्रमशः वरीष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर का निर्माण हुआ। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने यहां स्नान किया, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की, विश्वामित्र ने यहां तपस्या कि, वेदोें को यहां अंतिम रूप से संकलन हुआ। चौथी शताब्दी में कालिदास ने अपनी कृति 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' इसी स्थान पर रची थी। गुरु गोविन्द सिंह ने यहाँ पर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया था। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा कि इस सरोवर की तुलना तिब्बत की मानसरोवर झील के अलावा और किसी से नहीं की जा सकती। इस झील के चारों ओर अनेक प्राचीन मन्दिर है। इनमें ब्रह्माजी का मन्दिर सबसे प्राचीन है जिसका निर्माण 10 वीं शताब्दी में पंडित गोकुलचन्द पारीक ने करवाया था। इसी मन्दिर के सामने पहाड़ी पर ब्रह्मा जी की पत्नि 'सावित्री देवी' का मन्दिर है। जिसमें माँ सरस्वती की प्रतिमा भी लगी हुई है।(राजस्थान के बाड़मेर जिले में आसोतरा नामक स्थान पर एक अन्य ब्रह्मा मन्दिर भी है।)
पुष्कर झील के चारों ओर 52 घाट बने हुए है। इन घाटों पर लोग अपने पित्तरों का लोकर्पण करते है।कार्तिक पूर्णीमा को यहां मेला लगता है दिपदान कि क्रिया होती है आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बडा मेला है यहां पर एक महिला घाट भी बना हुआ है जिसे वर्तमान में गांधी घाट कहा जाता है। इसका निर्माण 1912 में मैडम मेरी ने करवाया था। गांधी जी की इच्छा पर उनकी अस्थियों का विसृजन पुष्कर झील में ही किया गया था। इनमें जयपुर घाट सबसे बड़ा है। पुष्कर में राजस्थान में दक्षिण भारतीय शैली का सबसे बड़ा मन्दिर श्री रंग जी का मन्दिर भी बना हुआ है।पुष्कर में आई मिट्टी को साफ करने में 1998 में कनाडा सरकार ने आर्थिक सहायता प्रदान की। पुष्कर के राताड्ढंगा में नाथ पंथ की बैराग शाखा की गद्दी बनी है।
पुष्कर के पंचकुण्ड को मृगवन घोषित किया।
फतहसागर झील (उदयपुर)
राज. के उदयपुर जिले में स्थित इस मीठे पानी की झील का निर्माण मेवाड के शासक जयसिंह ने 1678 ई. में करवाया। बाद में यह अतिवृष्टि होने के कारण नष्ट हो गई। तब इसका पुर्निमाण 1889 में महाराजा फतेहसिंह ने करवाया तथा इसकी आधार शिला ड्यूक आॅफ कनाॅट द्वारा रखी गई। अतः इस झील को फतहसागर झील कहा गया। इस झील में टापु है जिस पर नेहरू उधान बना है इस झील में सौर वैद्यशाला भी बनी है।
फतहसागर झील में अहम्दाबाद संस्थान ने 1975 में भारत की पहली सौर वैद्यशाला स्थापित की। इसी झील के समीप बेल्जियम निर्मित टेलिस्कोप की स्थापना सूर्य और उसकी गतिविधियों के अध्ययन के लिए की गई। फतहसागर झील से उदयपुर को पेय जल की आपूर्ति की जाती है।
उदयपुर के देवाली गांव में स्थित होने के कारण इसे देवाली तालाब भी कहा जाता है।
कोलायत झील (बीकानेर)
राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित इस मीठे पानी की झील के समीप साख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का आश्रम है। इस आश्रम को "राजस्थान का सुन्दर मरूद्यान" भी कहा जाता है। यह आश्रम एन.एच.-62 पर स्थित है।
कोलायत झील की उत्पति कपिल मुनि ने अपनी माता की मुक्ति के लिए की। यहीं पर कार्तिक मास की पूर्णिमा (नवम्बर) माह में मेला भरता है। इस झील में दीप जला कर अर्पण किया जाता है। समीप ही यहां एक शिवालय है जिसमें 12 शिवलिंग है।
सीलीसेठ झील
यह झील अलवर में स्थित है। इसके किनारे अलवर के महाराजा विनयसिंह ने 1845 में अपनी रानी के लिए एक शाही महल (लैक पैलेस) व एक शिकारी लौज का निर्माण करवाया। यह झली ‘राजस्थान का नंदन कानन’ कहलाती है।
उदयसागर झील
यह उदयपुर में स्थित है। इसका निर्माण मेवाड के शासक उदयसिंह ने आयड़ नदी के पानी को रोककर करवाया। इस झील से निकलने के बाद हि आयड़ का नाम बेड़च हो जाता है।
मेवाड़ महाराणा फाउंडेशन के द्वारा उदयसिंह पुरस्कार पर्यावरण के क्षेत्र में दिया जाता है।
फायसागर झील
यह अजमेर में स्थित है। इसका निर्माण बाण्डी नदी(उत्पाती नदी) के पानी को रोककर करवाया गया इसे अंग्रेज इजि. फाॅय के निर्देशन में बनाया गया। इसलिए इसे फाॅय सागर कहते है। इसका जलस्तर अधिक हो जाने पर इसका पानी आनासागर में भेज दिया जाता है।
बालसमंद झील
जोधपुर मण्डोर मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण 1159 में परिहार शासक बालकराव ने करवाया। इस झील के मध्य महाराजा सुरसिंह ने अष्ट खम्भा महल बनाया।
गजनेर झील(बीकानेर)
इस झील को पानी के शुद्ध दर्पण की संज्ञा दी गई है।
एडवर्ड सागर/गैब सागर(डुंगरपुर)
महारावल गोपीनाथ द्वारा निर्मित इस झील में बादल महल स्थित है।
यहां काली बाई की मुर्ति है।
विवेकानंद का स्मारक स्थित है।
नदसमंद(राजसमंद)
राजसमंद की जीवन रेखा भी कहा जाता है।
कायलाना झील(जोधपुर)
सर प्रताप ने इस झील का निर्माझा करवाया।
इसके पास ही माचिया सफारी पार्क स्थित है।
यहीं पर कागा की छतरीयां है।
मोती झील(भरतपुर)
इसे रूपारेल के पानी को रोक कर बनाया गया है।
इसे भरतपुर की जीवन रेखा भी कहा जाता है।
इस झील से नील हरित शैवाल प्राप्त होता है जिससे नाइट्रोजन युक्त खाद बनती है।
राजस्थान की खारे पानी की प्रमुख झीलें
साॅंम्भर झील
यह झील जयपुर की फुलेरा तहसील में स्थित है। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण चौहान शासक वासुदेव ने करवाया था। यह भारत में खारे पानी की आन्तरिक सबसे बड़ी झील है इसमें खारी, खण्डेला, मेन्था, रूपनगढ नदियां आकर गिरती है। यह झील दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर लगभग 32 किमी लंबी तथा 3 से 12 किमी तक चौड़ी है।
यह देश का नमक बनाने का सबसे बड़ा आन्तरिक स्त्रोत है यहां मार्च से मई माह के मध्य नमक बनाने का कार्य किया जाता है। यहां पर नमक रेस्ता, क्यार दो विधियों से तैयार होता है। यहां नमक केन्द्र सरकार के उपक्रम "हिन्दुस्तान साॅल्ट लिमिटेड" की सहायक कम्पनी 'सांभर साल्ट लिमिटेड' द्वारा तैयार किया जाता है।
भारत के कुल नमक उत्पादन का 8.7 प्रतिशत यहां से उत्पादित होता है।
यहां पर स्पाईरूलीना नामक शैवाल पाया जाता है जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
यहां पर साल्ट म्यूजियम(रामसर साईट पर्यटन स्थल) बनाया गया है।
दादू दयाल(राजस्थान का कबीर) ने प्रथम उपदेश सांभर झील के किनारे दिये।
इसी झील के किनारे शाकम्भरी माता का मंदिर बना हुआ है। जिसे तीर्थो कि नानी और देवयानी माता भी कह जाता है।
अकबर और जोधा का विवाह भी यहाँ भी हुआ कुरजां और राजहंस पक्षी आते है।
पंचभद्रा (बाड़मेर)
राजस्थान के बाड़मेर जिले के बालोत्तरा के पास स्थित है। इस झील का निर्माण पंचा भील के द्वारा कराया गया अतः इसे पंचभद्रा कहते है। इस झील का नमक समुद्री झील क नमक से मिलता जुलता है। इस झील से प्राप्त नमक में 98 प्रतिषत मात्रा सोडियम क्लोराइड है। अतः यहां से प्राप्त नमक उच्च कोटी है। इस झील से प्राचीन समय से ही खारवाल जाति के 400 परिवार मोरली वृक्ष की टहनियों(वायु रेस्ता विधि) से नमक के (क्रीस्टल) स्फटिक तैयार करते है।
डीडवाना झील (नागौर)
राजस्थान के नागौर जिले में लगभग 4 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैली इस झील में सोडियम क्लोराइड की बजाय सोडियम स्लफेट प्राप्त होता है। अतः यहां से प्राप्त नमक खाने योग्य नहीं है। इसलिए यहां का नमक विभिन्न रासायनिक क्रियाओं में प्रयुक्त होता है। कुओ द्वारा नमक का उत्पादन कोसिया पद्धति द्वारा डीडवाना झील नागौर इसक दूसरा नाम खल्दा झील भी है। सरकी माता या पाढा माता का मंदिर है।
इस झील के समीप ही राज्य सरकार द्वारा "राजस्थान स्टेट केमिकलवक्र्स" के नाम से दो इकाईयां लगाई है जो सोडियम सल्फेट व सोडियम सल्फाइट का निर्माण करते है। थोड़ी बहुत मात्रा में यहां पर नमक बनाने का कार्य निजी इकाइयों द्वारा भी किया जाता है जिन्हें 'देवल' कहते हैं। इनमें नमक पुराने तरीके से बनाया जाता है।
लूणकरणसर (बीकानेर)
राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित यह झील अत्यन्त छोटी है। परिणामस्वरूप यहां से थोडी बहुत मात्रा में नमक स्थानीय लोगो की ही आपूर्ति कर पाता है। उत्तरी राजस्थान की एकमात्र खारे पानी की झील है।
लूणकरणसर मूंगफली के लिए प्रसिद्ध होने के राजस्थान का राजकोट कहलाता है।
नावां झील(नागौर)
आदर्श लवण पार्क की स्थापना की गई है।
तथ्य
सांभर क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
कैस्पियन सागर क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
खारेपन की दृष्टि से वाॅन झील(तुर्की) सबसे खारी(330 ग्राम) है।