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प्राचीन सभ्यताऐं राजस्थान (

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यहा पर प्रथम में अंग्रेजी (English) के साथ साथ हिंदी में भी दिया हुवा हे ताकि पढ़ने में कोई समस्या न हो।

ENGLISH :- 

Kalibanga Civilization

 District - Hanumangarh
 River - Saraswati (Present Ghaggar)
 
Time - 3000 BC to 1750 BC
 Period
 
Inventor - 1952 Amalanand Ghose
 Excavator - (1961-69) B.V.  B.  Lal, V.K.  Thapar
 B.  B.  Red - Brajbasi Red
 B.  K.  Thapar - Balkrishna Thapar
 Literal Meaning - Black Bangles

कालीबंगा सभ्यता

जिला - हनुमानगढ़
नदी - सरस्वती(वर्तमान की घग्घर)
समय - 3000 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक
काल - कास्य युगीन काल
खोजकर्ता - 1952 अमलानन्द घोस
उत्खनन कर्ता - (1961-69) बी. बी. लाल, वी. के. थापर
बी. बी. लाल - बृजबासी लाल
बी. के. थापर - बालकृष्ण थापर
शाब्दीक अर्थ - काली चुडि़यां

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Features

 Evidence of a double plowed field

 The city is divided into two parts and both parts are surrounded by a security wall (Parkota).

 Evidences of ornate bricks, ornate floors have been found.

 Evidence has been obtained of a drain made of wood.

 From here, seven fire tanks have been found on a platform made of bricks, in which ash and animal bones have been obtained. Here camel bones, camel is their domestic animal.

 From here 'razor' wrapped in cotton cloth is obtained.

 Evidence of cotton cultivation has been obtained from here.

 Evidence of burnt rice has been obtained.

 Evidence of couple's mausoleum has been received.

 From here the clay has received the Nirmit scale (Futa).

 Evidence of surgery has been obtained from here.  A baby skeleton has been found.

 Evidence of earthquake has been found.

 According to Wakankar sir - Indus valley civilization should be called Saraswati river civilization as more than 200 cities were inhabited on the banks of river Saraswati.

विशेषताएं

दोहरे जुते हुऐ खेत के साक्ष्य
यह नगर दो भागों में विभाजित है और दोनों भाग सुरक्षा दिवार(परकोटा) से घिरे हुए हैं।
अलंकृत ईटों, अलंकृत फर्श के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
लकड़ी से बनी नाली के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
यहां से ईटों से निर्मित चबुतरे पर सात अग्नि कुण्ड प्राप्त हुए है जिसमें राख एवम् पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है।यहां से ऊंट की हड्डियां प्राप्त हुई है, ऊंट इनका पालतु पशु है।
यहां से सुती वस्त्र में लिपटा हुआ ‘उस्तरा‘ प्राप्त हुआ है।
यहां से कपास की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
जले हुए चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
युगल समाधी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
यहां से मिट्टी से निर्मिट स्केल(फुटा) प्राप्त हुआ है।
यहां से शल्य चिकित्सा के साक्ष्य प्राप्त हुआ है। एक बच्चे का कंकाल मिला है।
भूकम्प के साक्ष्य मिले हैं।
वाकणकर महोदय के अनुसार - सिंधु घाटी सभ्यता को सरस्वती नदी की सभ्यता कहना चाहिए क्योंकि सरस्वती नदी के किनारे 200 से अधिक नगर बसे थे।
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 Guise civilization


 District - Udaipur

 River - Ayad (on the banks of the river Berch)

 Time - 1900 BC to 1200 BC

 Era - Copper megalithic period

 Khojkarta - 1953 Akshay Kirti Vyas

 Excavation Court - 1956 R.P.  C. Aggarwal (Ratna Chandra Aggarwal)

 HD (cheerful Dhirajlal) Sankalia did the most excavation in 1961.

 Ahad's ancient name - Tamravati

 In the 10th or 11th century it was called Aghatpur / Aghat Durg.

 Local Name - Dhulcore

आहड़ सभ्यता

जिला - उदयपुर
नदी - आयड़(बेड़च नदी के तट पर)
समय - 1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व
काल - ताम्र पाषाण काल
खोजकत्र्ता - 1953 अक्षय कीर्ति व्यास
उत्खनन कत्र्ता - 1956 आर. सी. अग्रवाल(रत्नचन्द्र अग्रवाल)
सबसे अधिक उत्खनन करवाया 1961 में एच. डी.(हंसमुख धीरजलाल) सांकलिया ने।
आहड़ का प्राचीन नाम - ताम्रवती
10 या 11 शताब्दी में इसे आघाटपुर/आघाट दुर्ग कहते थे।
स्थानीय नाम - धुलकोर
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विशेषता

भवन निर्माण में पत्थर का प्रयोग
उत्खनन में अनाज पिसने की चक्की मिली है।
कपड़ों में छपाई किये जाने वाले छापे के साक्ष्य मिले हैं।
तांबा गलाने की भट्टी मिली है।
तांबे की 6 मुद्रायें(सिक्के) और 3 मोहरें मिली हैं।
चांदी से अपरिचित थे।
शव का सिर उत्तर दिशा में होता था।
यहां से एक भवन में छः मिट्टी के चुल्हे मिले हैं।
मिट्टी के बर्तन व तांबे के आभुषण मिले है।

बालाथल सभ्यता

जिला - उदयपुर(बल्लभनगर तहसील के पास)
नदी - बनास
समय - 1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व तक
आहड़ सभ्यता से सम्बधित ताम्रपाषाण युगीन स्थल
खोजकत्र्ता व उत्खनन कत्र्ता - 1993 वी. एन. मिश्र(विरेन्द्र नाथ मिश्र)

विशेषता

भवन निर्माण में पत्थर के साथ ईंटो का प्रयोग किया गया है।
विशाल भवन मिला है जिसमें 11 कमरे हैं।
पशुओं के अवशेष मिले हैं।
मिश्रित अर्थव्यवस्था के साक्ष्य मिले हैं।
कृषि के साथ - साथ पशुपालन का प्रचलन था।

गिलुण्ड/ गिलुन्द सभ्यता

जिला - राजसमंद
आहड़ सभ्यता से सम्बधित ताम्रपाषाण युगीन स्थल
खोजकत्र्ता/ उत्खनन कर्ता - 1957- 58 वी. बी.(वृजबासी) लाल

विशेषता

5 प्रकार के मृदभाण्ड(मिट्टी के बर्तन)
हाथी दांत की चूड़ियां मिली है।

धौलीमगरा

जिला - उदयपुर
आयड़ सभ्यता का नवीनतम स्थल

गणेश्वर सभ्यता

जिला - सीकर, नीम का थाना - सहसील
नदी - कांतली
समय - 2800 ईसा पुर्व
काल - ताम्रपाषाण काल(ताम्रपाषाण युगीन सभ्यता की जननी)
खोजकत्र्ता/उत्खनन कत्र्ता - 1977 आर. सी.(रत्न चन्द्र) अग्रवाल

विशेषताएं

मछली पकड़ने का कांटा मिला है।
ताम्र निर्मित कुल्हाड़ी मिली है।
शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, आभुषण, सुईयां मिले हैं।
यहां से तांबे का निर्यात भी किया जाता था। सिंधु घाटी के लोगों को तांबे की आपूर्ति यहीं से होती थी।

बैराठ सभ्यता

जिला - जयपुर
नदी - बाणगंगा
समय - 600 ईसा पुर्व से 1 ईस्वी
काल - लौह युगीन
खोजकत्र्ता/ उत्खनन कर्ता - 1935 - 36 दयाराम साहनी
प्रमुख स्थल - बीजक की पहाड़ी, भीम की डुंगरी, महादेव जी डुंगरी

विशेषता

1. महाजन पद संस्कृति के साक्ष्य(600 ईसा पुर्व से 322 ईसा पुर्व तक)

मत्स्य जनपद की राजधानी - विराटनगर
(मत्स्य जनपद - जयपुर, अलवर, भरतपुर)
विराटनगर - बैराठ का प्राचीन नाम है।

2. महाभारत संस्कृति के साक्ष्य

पाण्डुओं ने अपने 1 वर्ष का अज्ञातवास विराटनगर के राजा विराट के यहां व्यतित किया था।

3. बौद्धधर्म के साक्ष्य मिले हैं।

बैराठ से हमें एक गोलाकार बौद्ध मठ मिला है।
यहां पर स्वर्ण मंजूषा(कलश) मिली है जिसमें भगवान बुद्ध की अस्थियों के अवशेष मिले हैं।

4. मौर्य संस्कृति के साक्ष्य मिले हैं।

मौर्य समाज - 322 ईसा पुर्व से 184 ईसा पुर्व
सम्राट अशोक का भाब्रु शिलालेख बैराठ से मिला है।
भाब्रु शिलालेख की खोज - 1837 कैप्टन बर्ट
इसकी भाषा - प्राकृत भाषा
लिपी - ब्राह्मणी
वर्तमान में भाब्रु शिलालेख कोलकत्ता के संग्रहालय में सुरक्षित है।

5. हिन्द - युनानी संस्कृति के साक्ष्य मिले है।

यहां से 36 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं 36 में से 28 सिक्के हिन्द - युनानी राजाओं के है। 28 में से 16 सिक्के मिनेण्डर राजा(प्रसिद्ध हिन्द - युनानी राजा) के मिले हैं।
शेष 8 सिक्के प्राचीन भारत के सिक्के आहत(पंचमार्क) है।
नोट - भारत में सोने के सिक्के हिन्द - युनानी राजाओं ने चलाये थे।

तथ्य

पाषाण काल - 5 लाख ईसा पुर्व से 4000 ईसा पुर्व
ताम्र पाषाण काल - 4000 ईसा पुर्व - 1000 ईसा पुर्व
लौह युग - 1000 ईसा पुर्व से वर्तमान तक

अन्य सभ्यता

बागौर - भीलवाड़ा

कोठारी नदी के किनारे
उत्खन्न कर्ता - विरेन्द्र नाथ मिश्र
प्राचीन पशुओं की अस्थियों के अवशेष
भारत का सबसे संपन्न पाषाण स्थल।

चंद्रावती सभ्यता - सिरोही

गरूड़ासन पर विराजित विष्णु भगवान की मुर्ति मिली है।
कर्नल जेम्स टोड ने भी इस सभ्यता का जिक्र अपनी पुस्तक में किया है।

सुनारी - झुन्झुनू

लौहा गलाने की भट्टी मिली है।

रेड - टोंक

लौहे के भण्डार प्राप्त हुए हैं।
इस कारण इसे ‘प्राचीन भारत का टाटानगर‘ कहा जाता है।
एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार

गरदड़ा - बूंदी

छाजा नदी
प्रथम बर्ड राइडर राॅक पेंटिंग के शैल चित्र मिले हैं। यह देश में प्रथम पुरातत्व महत्व की पेंन्टिंग है।

नालियासर - जयपुर

लोहा युगीन सभ्यता

रंगमहल, पीलीबंगा - हनुमानगढ़

कांस्ययुगीन सभ्यता(सिन्धु घाटी सभ्यता के स्थल)
गुरू शिष्य की मुर्ति।

तथ्य

करणपुरा(नोहर) नवीनतम स्थल

सोंथी - बीकानेर

उत्खन्न कर्ता - अमला नंद घोष
कालीबंगा प्रथम के नाम से विख्यात।

नगरी - चित्तौड़गढ़

नगरी का प्राचीन नाम - मध्यमिका
गुप्तकाल की अवशेष।
शिवी जनपद के सिक्के मिले हैं।

नगर - टोंक

प्राचीन नाम - मालव नगर

जहाजपुरा - भीलवाड़ा

महाभारत कालिन अवशेष मिले हैं।

नोह - भरतपुर

कुषाण कालीन ईंट पर पक्षी का चित्र

नलिया सर - जयपुर

सांभर के निकट।
चौहान युग से पहले के अवशेष।

डडीकर - अलवर

पांच से सात हजार साल पुराने शैल चित्र मिले हैं।

तथ्य

पुरातात्वविद ओमप्रकाश कुक्की ने बूंदी से भीलवाड़ा तक 35 किमी. लंबी विश्व की सबसे लंबी शैलचित्र श्रृंखला खोजी है। भीलवाड़ा के गैंदी का छज्जा स्थान की गुफाओं में ये शैल चित्र मिले हैं।

प्राचीन संभ्यताएंजिला
बरोर, डेरा तरखानवालागंगानगर
रंगमहल, करणपुरा, बडोपलहनुमानगढ़
ओला और कुण्डाजैसलमेर
नोह,दरभरतपुर
जोधपुरा,चीथ वाड़ीजयपुर
गिलंुडराजसमंद
ओझियाणाभीलवाडा
डाडाथोराबीकानेर
गदरड़ाबूंदी(बर्डराइटराॅक पेटिंग)
सोथी, पूगल, डाडाथोराबीकानेर
ओला, कुण्डाजैसलमेर
औसियाजोधपुर
कुराड़ानागौर
भीनमाल, एलानाजालौर
ईसबाल, झाड़ोल
उदयपुर

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